Saturday, September 27, 2025

मुसाफ़िर

मुसाफ़िर हूँ, चलता हूँ, मंजिल की तलाश में,

मुसाफ़िर हूँ, भटकता हूँ, रुकता हूँ, सँभलता हूँ,

नए हौंसले रोज़ मुझे आगे बढ़ाते हैं, हर वक्त एक एहसास दिलाते हैं,

मुसाफ़िर हूँ, चलता हूँ, गिरता हूँ, थमता हूँ,

मुसाफ़िर हूँ अपनी मंज़िल में ख़ुद को ही पाता हूँ |

©® दिवाकर 'मुसाफ़िर' गर्ग 

Thursday, September 25, 2025

कहानी

हर रोज़ इक नयी कहानी बुनता हूँ,
हर रोज़ इक नयी कहानी सुनता हूँ,
हर कहानी में दर्द दबा रहता है, 
ज़िंदगी जीने का इक तर्ज़ दबा रहता है।

 ख़ामोश हूँ मैं सब सुनता हूँ,
अपने बिखरे सपनों को चुनता हूँ,
हर रोज़ इक नयी कहानी बुनता हूँ,
हर रोज़ इक नयी कहानी सुनता हूँ।

लफ़्ज़ नहीं ब्यान कर सकते ऐसे ख्याल हैं,
किसी की ज़िंदिगी जीने का ढंग,
किसी के दर्द भरी आहों को सुनता हूँ,
हर रोज़ इक नयी कहानी बुनता हूँ,
हर रोज़ इक नयी कहानी सुनता हूँ।

By दिवाकर 'मुसाफ़िर' गर्ग™©