हर रोज़ इक नयी कहानी सुनता हूँ,
हर कहानी में दर्द दबा रहता है,
ज़िंदगी जीने का इक तर्ज़ दबा रहता है।
ख़ामोश हूँ मैं सब सुनता हूँ,
अपने बिखरे सपनों को चुनता हूँ,
हर रोज़ इक नयी कहानी बुनता हूँ,
हर रोज़ इक नयी कहानी सुनता हूँ।
लफ़्ज़ नहीं ब्यान कर सकते ऐसे ख्याल हैं,
किसी की ज़िंदिगी जीने का ढंग,
किसी के दर्द भरी आहों को सुनता हूँ,
हर रोज़ इक नयी कहानी बुनता हूँ,
हर रोज़ इक नयी कहानी सुनता हूँ।
By दिवाकर 'मुसाफ़िर' गर्ग™©
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