अपनी ज़ुबानी सुनाना चाहता हूँ,
इक क़िस्सा पुराना याद आ गया,
वह गुज़रा ज़माना याद आ गया,
किसी के दर्द में अपने दर्द जाग उठे,
किसी के दर्द में अपना फ़साना याद आ गया।
©® दिवाकर 'मुसाफ़िर' गर्ग
मुसाफ़िर हूँ, चलता हूँ, मंजिल की तलाश में,
मुसाफ़िर हूँ, भटकता हूँ, रुकता हूँ, सँभलता हूँ,
नए हौंसले रोज़ मुझे आगे बढ़ाते हैं, हर वक्त एक एहसास दिलाते हैं,
मुसाफ़िर हूँ, चलता हूँ, गिरता हूँ, थमता हूँ,
मुसाफ़िर हूँ अपनी मंज़िल में ख़ुद को ही पाता हूँ |
©® दिवाकर 'मुसाफ़िर' गर्ग